उत्तर प्रदेश में पांच साल में मारे गए 12 पत्रकार, कानूनी नोटिसों और मुकदमों की भरमार

 

पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (CAAJ) ने उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए पहले मतदान की पूर्व संध्‍या पर ‍बुधवार को चौंकाने वाले आंकड़े जारी किये हैं। अपनी रिपोर्ट ”मीडिया की घेराबंदी” में समिति ने उद्घाटन किया है कि प्रदेश में पिछले पांच साल में पत्रकारों पर हमले के कुल 138 मामले दर्ज किये गये जिनमें पचहत्‍तर फीसद से ज्‍यादा मामले 2020 और 2021 के दौरान कोरोनाकाल में हुए।

समिति के मुताबिक 2017 से लेकर जनवरी 2022 के बीच उत्‍तर प्रदेश में कुल 12 पत्रकारों की हत्‍या हुई है। ये मामले वास्‍तविक संख्‍या से काफी कम हो सकते हैं। इनमें भी जो मामले ज़मीनी स्‍तर पर जांच जा सके हैं उन्‍हीं का विवरण रिपोर्ट में दर्ज है। जिनके विवरण दर्ज नहीं हैं उनको रिपोर्ट में जोड़े जाने का आधार मीडिया और सोशल मीडिया में आयी सूचनाएं हैं।

हमले की प्रकृतिहत्‍याशारीरिक हमलामुकदमा/गिरफ्तारीधमकी/हिरासत/जासूसीकुल
वर्ष     
201720002
201801102
2019039719
202071132252
202122923357
202214106
कुल12486612138

जैसा कि ऊपर दी हुई तालिका से स्पष्ट है, हमलों की प्रकृति के आधार पर देखें तो सबसे ज्यादा हमले राज्य और प्रशासन की ओर से किए गए हैं। ये हमले कानूनी नोटिस, एफआइआर, गिरफ़्तारी, हिरासत, जासूसी, धमकी और हिंसा के रूप में सामने आए हैं।

अकेले 2020 में कुल सात पत्रकार राज्‍य में मारे गये- राकेश सिंह, सूरज पांडे, उदय पासवान, रतन सिंह, विक्रम जोशी, फराज़ असलम और शुभम मणि त्रिपाठी। राकेश सिंह का केस कई जगह राकेश सिंह ‘निर्भीक’ के नाम से भी रिपोर्ट हुआ है। बलरामपुर में उन्‍हें घर में आग लगाकर दबंगों ने मार डाला। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की पड़ताल बताती है कि भ्रष्‍टाचार को उजागर करने के चलते उनकी जान ली गयी। राकेश सिंह राष्‍ट्रीय स्‍वरूप अखबार से जुड़े थे। उन्‍नाव के शुभम मणि त्रिपाठी भी रेत माफिया के खिलाफ लिख रहे थे और उन्‍हें धमकियां मिली थीं। उन्‍होंने पुलिस में सुरक्षा की गुहार भी लगायी थी लेकिन उन्‍हें गोली मार दी गयी। गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी को भी दिनदहाड़े गोली मारी गयी। इसी साल बलिया के फेफना में टीवी पत्रकार रतन सिंह को भी गोली मारी गयी। सोनभद्र के बरवाडीह गांव में पत्रकार उदय पासवान और उनकी पत्‍नी की हत्‍या पीट-पीट के दबंगों ने कर दी। उन्‍नाव में अंग्रेजी के पत्रकार सूरज पांडे की लाश रेल की पटरी पर संदिग्‍ध परिस्थितियों में बरामद हुई थी। पुलिस ने इसे खुदकुशी बताया लेकिन परिवार ने हत्‍या बताते हुए एक महिला सब-इंस्‍पेक्‍टर और एक पुरुष कांस्‍टेबल पर आरोप लगाया, जिसके बाद उनकी गिरफ्तारी हुई। कौशांबी में फराज असलम की हत्या 7 अक्टूबर 2020 को हुई। फराज़ पैगाम-ए-दिल में संवाददाता थे। इस मामले में पुलिस को मुखबिरी के शक में हत्या की आशंका जतायी गयी है क्योंकि असलम पत्रकार होने के साथ-साथ पुलिस मित्र भी थे। इस हत्या के ज्यादा विवरण उपलब्ध नहीं हैं। पुलिस ने जिस शख्स को गिरफ्तार किया था उसने अपना जुर्म कुबूल कर लिया जिसके मुताबिक उसने असलम को इसलिए मारा क्योंकि वह उसके अवैध धंधों की सूचना पुलिस तक पहुंचाते थे। ज्यादातर मामलों में हुई गिरफ्तारियां इस बात की पुष्टि करती हैं कि मामला हत्‍या का था।

शरीरिक हमलों की सूची बहुत लंबी है। कम से कम 50 पत्रकारों पर पांच साल के दौरान शारीरिक हमला किया गया, जो इस रिपोर्ट में दर्ज है। हत्‍या के बाद यदि संख्‍या और गंभीरता के मामले में देखें तो कानूनी मुकदमों और नोटिस के मामले 2020 और 2021 में खासकर सबसे संगीन रहे हैं। उत्‍तर प्रदेश का ऐसा कोई जिला नहीं बचा होगा जहां पत्रकारों को खबर करने के बदले मुकदमा न झेलना पड़ा हो।

खबर को सरकारी काम में दखल और षडयंत्र मानने से लेकर अब पत्रकार को पत्रकार न मानने तक बात आ पहुंची है। यह परिघटना भी केवल स्‍थानीय पत्रकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि उत्‍तर प्रदेश में बीबीसी और हिंदू जैसे प्रतिष्ठित संस्‍थानों के पत्रकारों के साथ भी यही बरताव किया जाता है। थाने में बुलाकर पूछताछ, हिरासत, आदि की घटनाएं भी इस रिपोर्ट में दर्ज हैं। जासूसी के मामले में उत्‍तर प्रदेश से जो पत्रकार पेगासस की जद में आये हैं, उनमें डीएनए लखनऊ के पूर्व पत्रकार दीपक गिडवानी और इलाहाबाद से प्रकाशित पत्रिका ‘दस्‍तक नये समय की’ की संपादक सीमा आज़ाद हैं। 

न सिर्फ एडिटर्स गिल्‍ड बल्कि प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया से लेकर सीपीजे, आरएसएफ और प्रादेशिक पत्रकार संगठनों की चिंताओं के केंद्र में उत्‍तर प्रदेश की घटनाओं का होना बताता है कि चारों ओर से पत्रकारों की यहां घेराबंदी की जा रही है।

अपने निष्‍कर्ष में रिपोर्ट कहती है कि महामारी के बहाने निर्मित किये गये एक भयाक्रान्‍त वातावरण के भीतर मुकदमों, नोटिसों, धमकियों के रास्‍ते खबरनवीसी के पेशेवर काम को सरकार चलाने के संवैधानिक काम के खिलाफ जिस तरह खड़ा किया गया है, पत्रकारों की घेरेबंदी अब पूरी होती जान पड़ती है।

पूरी रिपोर्ट डाउनलोड करने के लिए नीचे दी हुई तस्वीर पर क्लिक करें: