दिल्ली के रिटायर्ड कर्मचारियों का ‘अग्निपथ’

 

“ये बेहद दुखद है कि जिन अधिकारियों के साथ हमने काम किया, जिनके हक़ की आवाज़ उठायी, वे रिटायरमेंट के बाद विजिलेंस क्लीयरेंस देने के लिए हमसे रिश्वत की उम्मीद कर रहे हैं, वो ही आज अधिकारी बनकर हमारी फ़ाइलों पर उल्टी सीधी अंग्रेज़ी लिख रहे हैं.”

दयानंद सिंह

61 वर्षीय दयानंद सिंह, जो अपनी 34 वर्षीय सरकारी सेवा के दौरान दिल्ली सरकार के कर्मचारियों की यूनियन के अध्यक्ष भी रहे, उन्हें रिटायरमेंट के डेढ़ साल बाद अपने पोस्ट रिटायरमेंट बेनेफिट्स यानी सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले लाभ लेने के लिए विभिन्न विभागों और हाईकोर्ट के धक्के खाने को मजबूर होना पड़ रहा है, जिसकी वजह से उन्हें मानसिक तनाव झेलना पड़ रहा है.

दयानंद सिंह पिछले साल – 31 जनवरी 2021 – को दिल्ली सरकार के गुरु नानक आई सेंटर के प्रशासनिक अधिकारी के पद से रिटायर हुए थे. रिटायरमेंट के बाद रिटायर्ड कर्मचारी को सरकार की ओर से कई योजनाओं के तहत विभिन्न लाभ मिलते हैं. ये कर्मचारियों के अपने हक के पैसे होते हैं जो उन्होंने अपनी जीवन भर की सर्विस (सरकारी नौकरी) के दौरान कमाये होते हैं. जैसे, रिटायरमेंट के बाद बची हुई छुट्टियों का पैसा मिलता है, ग्रेच्युटी व उसकी कम्युटेशन और इंश्योरेंस का पैसा मिलता है. साथ ही पीएफ में जमा पैसे मिलते हैं.

लेकिन दयानंद सिंह को रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले ग्रेच्युटी के पैसों समेत फ़रवरी 2010 से देय एमएसीपी अपग्रेडेशन का लाभ भी अब तक नहीं मिला है, जिनकी कुल राशि लगभग 45 लाख रुपये है.

अधिकारियों की मनमर्ज़ी, उत्पीड़न की वजह

दयानंद सिंह बताते हैं, “रिटायर होने से क़रीब डेढ़ साल पहले, लगभग दस साल पुराने (2011 के) एक केस से संबंधित एफआईआर में मेरा नाम बिना किसी वजह के जोड़ दिया गया. यह मामला दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल (जीटीबी) में पार्किंग के टेंडर से जुड़ा बताया जाता है. विजिलेंस विभाग के मुताबिक, अस्पताल के अधिकारियों की ग़लती से सरकार को इस टेंडर में क़रीब 63 लाख का नुक़सान हुआ. लेकिन जिस दौर में यह सब हुआ – तब ना तो मैं अस्पताल में कार्यरत था और ना ही पार्किंग टेंडर के एग्रीमेंट में हुई ग़लती से मेरा कोई वास्ता रहा. फिर भी इस मामले में हुई एफआईआर में मेरा नाम शामिल कर लिया गया और रिटायरमेंट के समय मेरे सभी बेनिफिट्स बिना किसी आरोप-पत्र के ही रोक लिये गये.”

इस संबंध में जब हमने दयानंद सिंह का नाम एफआईआर में दर्ज करने वाले विजिलेंस अधिकारी अजय बिष्ट से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने इस बारे में कोई टिप्पणी करने से साफ़ इनकार कर दिया.

हालांकि, विजिलेंस विभाग के उप-सचिव गुलशन अहुजा ने बताया कि ‘दयानंद सिंह के विजिलेंस क्लीयरेंस का मामला पिछले कुछ समय से प्रोसेस में हैं और जल्द ही उन्हें विजिलेंस क्लीयरेंस देने की कोशिश की जा रही है.’ लेकिन वे इसकी कोई तय समय-सीमा नहीं बता पाये.

दयानंद सिंह के अनुसार, विजिलेंस ब्रांच की लापरवाही की सजा उन्हें भुगतनी पड़ रही है. वे दावा करते हैं कि “दिल्ली सरकार की एंटी करप्शन ब्रांच और अस्पताल की विजिलेंस ब्रांच, दोनों उन पर लगे आरोपों का कोई आधार नहीं ढूंढ पाये हैं. जीटीबी अस्पताल प्रशासन 23 दिसंबर 2020 को ही लिख चुका है कि दयानंद सिंह को कभी किसी जांच रिपोर्ट में आरोपी नहीं पाया गया, ना ही कोई ऐसा दस्तावेज़ है जिसके आधार पर उनके ख़िलाफ़ चार्जशीट बनायी जा सके. फिर भी विजिलेंस विभाग क्लीयरेंस नहीं दे रहा है.”

दस्तावेज़ के पैरा संख्या 7, 8, 9, 10 और 16 में यह साफ लिखा गया है कि दयानंद सिंह पर लगे आरोपों का कोई आधार नहीं ढूंढ पाये हैं.

वे कहते हैं कि ‘मेरा नाम एफ़आईआर में शामिल होने का बहाना बनाकर मेरा जानबूझकर उत्पीड़न किया जा रहा है.’

चार्जशीट बनाने में असमर्थ विजिलेंस विभाग

दिल्ली हाईकोर्ट में दयानंद सिंह का पक्ष रख रहीं वरिष्ठ वकील फ़िल्ज़ा फ़रीदी कहती हैं कि “पार्किंग टेंडर के लिए अस्पताल प्रशासन के साथ कंपनी के एग्रीमेंट के समय (वर्ष 2011-13) दयानंद सिंह ने कुछ सुझाव ज़रूर दिये थे, लेकिन कॉन्ट्रेक्ट के एग्रीमेंट डीड में हुई ग़लती से उनका कोई ताल्लुक नहीं है. प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में उन पर कोई आरोप भी नहीं लगा. मेरे मुवक्किल का किसी भी अनियमितता से कोई संबंध नहीं रहा है, इस बात को अस्पताल प्रशासन भी स्वीकार कर चुका है.”

दिल्ली सरकार के गुरु तेग़ बहादुर (जीटीबी) अस्पताल के प्रशासनिक अधिकारी आर के डबराल के अनुसार, जीटीबी अस्पताल प्रशासन ने कभी भी दयानंद सिंह को किसी जांच रिपोर्ट में आरोपी नहीं ठहराया और ना ही फ़ाइल में उनके ख़िलाफ़ ऐसा कोई दस्तावेज़ मौजूद है, जिसके आधार पर उनपर कोई चार्ज बन सके.

इसी मसले में जीटीबी अस्पताल के विजिलेंस अफ़सर राजेश कालरा ने 23 दिसंबर 2020 को स्वास्थ्य विभाग की विजिलेंस शाखा के मार्फ़त विजिलेंस विभाग को पत्र लिखकर यह सूचित किया था कि ‘सारे रिकार्ड्स की जाँच करने के बाद हम दयानंद सिंह के ख़िलाफ़ चार्जशीट बनाने में असमर्थ हैं, क्योंकि उन्हें कभी किसी जांच कमेटी द्वारा आरोपी नहीं ठहराया गया और ना ही ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध है.’

डीओपीटी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन

भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ़ पेरसोनेल एंड ट्रेनिंग) ने सरकारी कर्मचारियों के विजिलेंस क्लीयरेंस जारी करने से संबंधित विभिन्न दिशा-निर्देशों समय-समय पर जारी किये हुए हैं. ये दिशा-निर्देश एक प्रकार से सरकारी कर्मचारियों के लिए रूल-बुक की तरह हैं जिसके अंतर्गत सरकार के सभी विभाग होते हैं. सरकार की डीओपीटी गाइडलाइंस के अनुसार, जब किसी कर्मचारी पर एफआईआर दर्ज की जाती है तो एफआईआर होने के 90 दिनों के भीतर उस मामले की चार्जशीट कोर्ट में जमा करानी होती है. लेकिन दयानंद सिंह के मामले में ऐसा अब तक नहीं हुआ, ना ही उनके ख़िलाफ़ चार्जशीट बन पायी है.

प्रशासनिक मामलों के जानकार रिटायरमेंट के समय दी जाने वाली विजिलेंस क्लीयरेंस रिपोर्ट को एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ मानते हैं. सेवा के समापन पर इसे एक क़िस्म की ‘क्लीन-चिट’ समझा जाता है, ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि रिटायर हो रहे कर्मचारी के ख़िलाफ़ कोई मामला लंबित नहीं है.

लेकिन अधिकांश कर्मचारी संगठन इस बात पर ज़ोर देते हैं कि विजिलेंस क्लीयरेंस को एक विभाग द्वारा सेवानिवृत्त कर्मचारियों का उत्पीड़न करने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा है.

इस ट्रेंड को समझने के लिए हमने दिल्ली सरकार के विजिलेंस विभाग में लम्बे समय तक काम कर चुके और विजिलेंस मामलों के विशेषज्ञ ने अपना नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर कुछ महत्वपूर्ण खुलासे किए.

उन्होंने बताया, दिल्ली में विजिलेंस क्लीयरेंस की वजह से परेशान हो रहे सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी है, जो अब हजारों में भी हो सकती है.

उनके मुताबिक़, “सरकार में काम कर रहे कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद मुख़्तलिफ़ कारणों से विजिलेंस क्लीयरेंस सर्टिफ़िकेट नहीं मिल पाना बहुत आम हो गया है. दिल्ली के स्पेशल सेक्रेटरी (सर्विसेज़) कुलानंद जोशी की 13 जून 2022 को लिखी गई चिट्ठी इस पूरी परिस्थिति की पोल खोलती है.”

दिल्ली के स्पेशल सेक्रेटरी (सर्विसेज़) कुलानंद जोशी की विजिलेंस विभाग को लिखी चिट्ठी

उन्होंने कहा, “स्पेशल सेक्रेटरी को यह लिखना पड़ा है कि पेंशन से संबंधित जितने भी लंबित मामले हैं उन्हें अंजाम तक पहुँचाने के लिए पंद्रह जून से पंद्रह जुलाई तक एक स्पेशल ड्राइव चलायी जाये. लेकिन जब तक विजिलेंस विभाग डीओपीटी के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करता, तब तक स्थिति में सुधार होना बहुत मुश्किल लगता है.”

भ्रष्टाचार और उत्पीड़न

दिल्ली सरकार के कुछ मौजूदा वरिष्ठ अधिकारी और दिल्ली सरकार के मंत्री भी नाम ना ज़ाहिर करने की शर्त पर विजिलेंस विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की बात को स्वीकार करते हैं.

कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ दिल्ली गवर्नमेंट एम्प्लाइज़ एसोसिएशन के महासचिव अजय वीर यादव दिल्ली सरकार के विजिलेंस विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को ऐसे मामलों में हुई बढ़ोतरी की वजह मानते हैं. उन्होंने बताया कि ज़्यादातर मामले सिर्फ़ विजिलेंस क्लीयरेंस नहीं मिलने की वजह से लंबित हैं.

जीटीबी अस्पताल की जांच में यह भी कहा गया की तथ्यों को अनदेखा कर दयानंद सिंह को संदिग्ध माना गया और उन्हें आरोपित किया गया.

अजय वीर यादव के अनुसार, दिल्ली सरकार का विजिलेंस विभाग अधिकांश मामलों में डीओपीटी यानी कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के दिशा-निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन करते हुए विजिलेंस क्लीयरेंस की रिपोर्ट को रोकता है और रिटायरमेंट के बाद कर्मचारियों के ख़िलाफ़ लंबित कई वर्ष पुरानी शिकायतों का हवाला देकर उनका उत्पीड़न किया जाता है.

वे दयानंद सिंह के मामले को भी उसी कड़ी का हिस्सा बताते हैं. वे कहते हैं, “जहाँ कथित अनियमितता पायी गई, वो विभाग ही लिख रहा है कि दयानंद सिंह का इससे कोई वास्ता नहीं, विजिलेंस विभाग की जांच टीम को आज तक उनके ख़िलाफ़ एक सबूत या गवाह नहीं मिला, चार्जशीट वो दायर नहीं कर पाये, लेकिन उन्हें क्लीयरेंस भी नहीं दिया गया. ऐसे में विजिलेंस विभाग की कार्यशैली और उनके इरादों पर सवाल उठने लाज़िमी हैं.”

सेवानिवृत्त कर्मचारियों के संगठन, ऑल इंडिया रिटायर्ड पब्लिक सर्वेंट्स फ़ोरम के महासचिव राजबीर सिंह छिकारा कहते हैं कि सरकारी सेवा के दौरान कर्मचारियों की सुविधाओं और उनके अधिकारों को लेकर मुखर रहे कुछ अधिकारियों को कई बार रिटायर होने के बाद आला अधिकारियों की नाराज़गी का अंजाम भुगतना पड़ता है. वे मानते हैं कि यह रिटायर होने के बाद किसी पूर्व कर्मचारी से बदला लेने जैसी कार्यवाही है.

दयानंद सिंह के मामले का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, “दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के बीच 2018 में हुए विवाद में दयानंद सिंह की चर्चित भूमिका रही थी. उन्होंने दास कैडर के कर्मचारियों की यूनियन के अध्यक्ष के तौर पर उस प्रकरण में खुलकर अपने विचार व्यक्त किये थे. संभवत: उस दौरान नाराज़ हुए कुछ अधिकारियों के इशारे पर उनका उत्पीड़न किया जा रहा हो जो कि पूरी तरह अन्यायपूर्ण है और मौजूदा कर्मचारी यूनियनों में भय पैदा करने का एक प्रयास है.”