हसदेव अरण्य: साढ़े चार लाख पेड़ों को निगल जाएगा अडानी का माइनिंग कारोबार
![](https://www.gaonsavera.com/wp-content/uploads/2022/05/hasdev-aranaya.jpg)
देश के सबसे घने जंगलों में से एक छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में माइनिंग के लिये पेड़ काटे जाने पर ‘फ्रेंड्स ऑफ हसदेव अरण्य’ द्वारा (बधुवार) 25 मई को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में प्रेस वार्ता आयोजित किया गया. छत्तीसगढ़ के सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा जिलों में विशाल क्षेत्र में फैले हसदेव अरण्य जिसे ‘छत्तीसगढ़ के फेफड़े’ भी कहा जाता है, में कोयला खनन का मुद्दा देश ही नहीं अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उठने लगा है.
बीते कुछ दिन पहले 23 मई सोमवार को हसदेव अरण्य में कोयला खनन का मुद्दा लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में उठा जब वहां पहुंचे राहुल गांधी से एक स्टूडेंट ने इसके बारे में सवाल किया. जवाब में राहुल गांधी ने कहा, वे इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर बात कर रहे हैं और जल्दी ही इसका नतीजा भी दिखेगा.
इसी सिलसिले में बुधवार की प्रेस वार्ता में वक्ताओं ने अपनी बात रखी. इस वार्ता को छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के नेता आलोक शुक्ला, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद, पर्यावरण शोधकर्ता कांची कोहली, पीयूसीएल से कविता श्रीवास्तव समस्त आदिवासी समूह के डॉ. जितेंद्र मीणा, अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव और संयुक्त किसान मोर्चा के नेता हन्नान मोल्लाह और एनएपीएम के नेता राजेंद्र रवि ने संबोधित किया.
हसदेव अरण्य में कोयला खनन के लिए जंगल की कटाई का विरोध पिछले 10 सालों से लगातार चल रहा है. इस मामले पर हम से बात करते हुए आलोक शुक्ला ने बताया कि, “हसदेव अरण्य को बचाने के लिए स्थानीय आदिवासियों ने हर तरह से संघर्ष किया है. 2014 में जब यहां के कोयला ब्लॉक का आवंटन (अलोटमेंट) हुआ था तब यहां की ग्राम सभाओं ने इनका विरोध किया था. उसके बाद जंगल की ज़मीन पर ग्राम सभाओं ने माइनिंग का विरोध लगातार किया. साल 2015, 2017 और 2018 में भी लगातार प्रदर्शन किया. लेकिन फर्जी ग्राम सभाएं प्रस्ताव जारी कर माइनिंग के लिए स्वीकृति हांसिल की गई. 2019 में आदिवासियों ने लगातार 75 दिनों तक प्रदर्शन जारी रखा, जिसे सरकार और प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों पर झूठे मुक़दमे दायर कर आन्दोलन को जबरदस्ती समाप्त करवाया. कोयला खनन के विरोध में आदिवासियों ने मदनपुर से चलकर रायपुर तक आदिवासियों ने 10 दिनों तक 300 किलोमीटर की पैदल यात्रा की और अपना विरोध जताया.”
आलोक शुक्ला ने बताया कि समय समय पर हसदेव अरण्य से सम्बंधित अध्ययन हुए हैं, जिसमे यह साफ़ कहा गया है कि हसदेव में माइनिंग नहीं की जानी चाहिए. “यह इलाका संविधान के 5वी अनुच्छेद में भी आता है जिसके तहत यहां की ग्रामसभाओं के अपने अधिकार हैं. फिर चाहे वह जमीन अधिग्रहण का मामला हो या जंगल की जमीन पर खनन का मामला हो, जब तक ग्राम सभाएं इनकी मंजूरी नहीं देती तब तक ऐसा कुछ भी लागू नहीं किया जा सकता.”
आलोक शुक्ला ने आगे बताया कि 6,500 एकड़ से अधिक सुंदर प्राचीन जंगलों में 4.5 लाख से ज्यादा पेड़ कटने की संभावना है. खबर यह भी है कि पर्यावरणविदों, नौजवानों और नागरिक समाज द्वारा बड़े विरोध के बावजूद एक तीसरी खनन परियोजना – के एक्सटेंशन – को मंजूरी दी जा रही है, जिससे कई लाख और पेड़ों को काटे जाने की संभावना है. साफ़ कहें तो, ये सभी परियोजनाएँ एक समृद्ध, प्राचीन पारिस्थितिक तंत्र (इकोसिस्टम) को पूरी तरह से बर्बाद कर देगी. आलोक शुक्ला ने बताया कि वे हसदेव अरण्य जंगल कटाई के लिए जिम्मेदार केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें हैं. वे बताते हैं कि “देश के संघीय ढाँचे होने की वजह से केंद्र और राज्य दोनों कि जिम्मेदारियां और जवाबदेही है. कोयला ब्लॉक का आवंटन यदि केंद्र ने किया है तो जमीन और जंगल की जवाबदेही राज्य सरकार की है. इन दोनों सरकारों का विरोध तो है ही साथ ही खनन कंपनी के एमडीओ अडानी ग्रुप का भी विरोध कर रहे हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि अडानी को फायदा पहुँचाने के लिए दोनों ही सरकारों ने हसदेव अरण्य जंगल को तबाह करने की ठान ली है.”
Top Videos
![](https://www.gaonsavera.com/wp-content/uploads/2023/12/tractor-rally-pti.jpg)
किसानों ने 27 राज्यों में निकाला ट्रैक्टर मार्च, अपनी लंबित माँगों के लिए ग़ुस्से में दिखे किसान
![](https://www.gaonsavera.com/wp-content/uploads/2023/07/1200-675-18883514-thumbnail-16x9-bhiwani.jpg)
उत्तर प्रदेश के नोएडा के किसानों को शहरीकरण और विकास क्यों चुभ रहा है
![](https://www.gaonsavera.com/wp-content/uploads/2023/10/Capture.jpg)
Gig Economy के चंगुल में फंसे Gig Workers के हालात क्या बयां करते हैं?
![](https://www.gaonsavera.com/wp-content/uploads/2023/07/Screenshot_2023-07-17-07-34-18-09_0b2fce7a16bf2b728d6ffa28c8d60efb.jpg)
Haryana में बाढ़ क्यों आयी? घग्गर नदी | मारकंडा नदी | टांगरी नदी
![](https://www.gaonsavera.com/wp-content/uploads/2024/02/maxresdefault-11-1200x675.jpg)