“कंपनियां बिना अनुबंध काम पर रख खून पी रही” गिग वर्कर्स की राष्ट्रव्यापी हड़ताल!

 

खाने और किराना डिलीवरी से जुड़े गिग वर्कर्स ने 31 दिसंबर को देशभर में राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है. नए साल की पूर्व संध्या पर की जा रही इस हड़ताल का असर ज़ोमैटो, स्विगी, ब्लिंकिट, जेप्टो, इंस्टामार्ट जैसी प्रमुख प्लेटफॉर्म कंपनियों की सेवाओं पर पड़ने की आशंका है.

गिग वर्कर्स का कहना है कि कंपनियां उनसे कम मजदूरी में अधिक काम करवा रही हैं और 10-मिनट या अल्ट्रा-फास्ट डिलीवरी जैसे मॉडल उनकी सुरक्षा के लिए खतरनाक हैं. हड़ताल का आह्वान देश के कई गिग वर्कर्स यूनियनों और संगठनों ने मिलकर किया है.

हड़ताल कर रहे श्रमिकों की प्रमुख मांगों में शामिल हैं—

प्रति किलोमीटर न्यूनतम और सुनिश्चित भुगतान
10-मिनट डिलीवरी जैसे असुरक्षित मॉडल को खत्म करना
दुर्घटना बीमा और स्वास्थ्य बीमा जैसी सामाजिक सुरक्षा
बिना कारण आईडी ब्लॉक करने की नीति पर रोक
काम के घंटे और एल्गोरिदम आधारित पेनल्टी सिस्टम में पारदर्शिता

गिग वर्कर्स का आरोप है कि एल्गोरिदम के जरिए उन्हें लगातार दबाव में रखा जाता है और जरा सी गलती पर उनकी आईडी ब्लॉक कर दी जाती है, जिससे उनकी रोजी-रोटी पर सीधा असर पड़ता है.

हैदराबाद, बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, पुणे और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में हड़ताल का असर देखने को मिला है. कुछ इलाकों में डिलीवरी में देरी हुई, जबकि कई जगहों पर वर्कर्स ने पूरी तरह लॉग-आउट किया.

हड़ताल के मद्देनजर कुछ प्लेटफॉर्म कंपनियों ने अस्थायी रूप से अतिरिक्त इंसेंटिव और बोनस देने की घोषणा की है, ताकि नए साल की रात सेवाएं सुचारु रखी जा सकें हालांकि, गिग वर्कर्स का कहना है कि इंसेंटिव स्थायी समाधान नहीं है.

गौरतलब है कि नीति आयोग की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2020 में भारत में लगभग 77 लाख गिग वर्कर्स थे, जिनकी संख्या 2030 तक बढ़कर 2.35 करोड़ होने का अनुमान है.

वहीं, गिग अर्थव्यवस्था में युवाओं (16 से 23 वर्ष आयु वर्ग) की भागीदारी 2019 से 2022 के बीच आठ गुना बढ़ी है. इसमें ज्यादातर पढ़ाई करने वाले और नौकरी तलाश रहे युवा शामिल हैं, जो अपने खर्च के लिए पार्ट टाइम काम के तौर पर अपनी सेवाएं देते हैं.

अलग-अलग प्लेटफॉर्म से जुड़े कुछ युवाओं ने द वायर को बताया कि उन्हें सप्ताह में एक दिन भी छुट्टी नहीं मिलती है. वे अपनी मौजूदा कमाई से अपने घर के मासिक बुनियादी खर्च भी पूरे नहीं कर पा रहे हैं. वे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा प्लेटफॉर्म फीस और कटौतियों में खो देते हैं. इसके साथ ही कई बार उन्हें अपनी गरिमा और सुरक्षा से भी समझौता करना पड़ता है.

यह हड़ताल एक बार फिर भारत में गिग इकोनॉमी में काम कर रहे लाखों श्रमिकों के अधिकार, सुरक्षा और भविष्य पर सवाल खड़े करती है. विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक गिग वर्कर्स को श्रम कानूनों के दायरे में नहीं लाया जाता, ऐसे आंदोलन आगे भी होते रहेंगे.