खनन के कारण मेरे गांव का पूरा पहाड़ गायब हो गया और अब AQI 350 पार: राकेश सांगवान

 

अरावली की पहाड़ियों की श्रृंखला दक्षिण हरियाणा से शुरू होती है. इसी श्रृंखला की मेरे गांव मानकावास में भी एक पहाड़ी है. हमारे चरखी दादरी और महेंद्रगढ़ क्षेत्र में दबाकर खनन का काम चल रहा है. जिस कारण लाखों की संख्या में पेड़ काटे गए हैं और बड़ी संख्या में काटे जाने की कगार पर भी हैं. ऐसे में सिर्फ पेड़ ही नहीं, इन पहाड़ियों और इसकी जंगलात में रहने वाले जीव जंतुओं का जीवन भी संकट में है. लोग प्रशासन और NGT तक में शिकायतें कर के थक चुके हैं, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है.

अरावली क्षेत्र में जमीन का पानी खारा है. सिर्फ ऊपरी भूजल से काम चलता था, वह भी कहीं कहीं मीठा मिलता था. हमारे खेतों में आज भी मेरे परदादा के समय के दो कुएं मौजूद हैं, उनमें कभी मीठा पानी हुआ करता था, पर अब खारा पानी है. जिनका जन्म अस्सी के दशक से पहले का है उन्हें अच्छे से ध्यान होगा कि गांव में पीने के पानी के लिए औरतें सारा दिन कुएं से पानी ढोने में लगी रहती थी, नल के पानी का पता नहीं होता था कि कितने दिन में आएगा, तो घरवाले बच्चों की ड्यूटी नलकों पर ओसरे के लिए लगाते थे.

चौधरी बंसी लाल ने इस क्षेत्र में नहरों का जाल बिछाया तब जाकर यहां हालात बदलने शुरू हुए. इससे ये बदलाव हुआ कि नहर के कारण उसके आसपास का भूजल मीठा हो गया. हालांकि, पानी यहां ज्यादा गहराई पर नहीं था, क्योंकि बरसात के मौसम में यहां पहाड़ियों के कारण नाले बहते थे, पर वह सारा पानी बर्बाद ही जाता था, सरकार की कोई नीति नहीं थी. सन् 1995 में आई हरयाणा की बाढ़ से हमारा क्षेत्र भी प्रभावित था. सन् 1996 में चौधरी बंसी लाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने थे, तो वे वर्ल्ड बैंक की सहायता से वॉटरशेड स्कीम लेकर आए, इस योजना के तहत सभी पहाड़ियों के चारों तरफ रेत के बांध बनाए गए. इसका फायदा यह हुआ कि आए साल बरसाती नालों से होने वाला नुकसान बचा, वाटर हार्वेस्टिंग से हमारे क्षेत्र का भूजल स्तर सुधरा और भूजल के ऊपरी स्तर का पानी भी खेती लायक हो गया. नहर और वॉटर हार्वेस्टिंग योजना के कारण ही आज हमारे क्षेत्र में उस धरती में भी धान की खेती हो रही है जिस पर कभी बाजरा ग्वार जैसी फसल भी उगने में नखरे करती थी.

सन् 2000 के बाद से देश में विकास की रफ्तार पकड़ी तो अरावली की इन पहाड़ियों में खनन का कार्य बढ़ने लगा, पर 2005–14 के बीच हमारे यहां खनन कार्य बंद हो गया. बीजेपी सरकार आने के बाद यहां फिर से खनन कार्य शुरू हुआ. खनन इतनी तेज गति से शुरू हुआ कि हमारे गांव का आधा पहाड़ तो गायब ही हो गया है. जबकि हम बचपन में बुजुर्गों से सुनते थे कि पहाड़ भी कभी खत्म होते हैं. पर अब देखा कि खत्म होते हैं. अब सौ फुट की गहराई तक खनन हो रहा है. नीचे से जो खारा पानी रिस रहा है, मोटरों के जरिए उस खारे पानी को पहाड़ी के पास की जमीन में डाला जा रहा है. अब इससे दो तीन नुकसान हो रहें हैं. पहला यह कि इससे हमारे गांव का भूजल स्तर नीचे जाता जा रहा है, दूसरा ये कि ऊपर का पानी भी खराब हो रहा है, तीसरा ये कि इससे पहाड़ के चारों तरफ जो जंगल था वह खत्म हो रहा है, सारे पेड़ पौधे सूखते जा रहे हैं और एक चौथा नुकसान, उन बेचारे जीव जंतुओं के साथ बुरी बन गई जिनका ठिकाना यह पहाड़ और इसके आसपास का जंगल था.

कभी बचपन में गीदड़ देखे थे, अब फिर से गीदड़ और कुछ अन्य जानवर खेतों में दिखने लगे हैं. मैंने एक भाई से पूछा कि ये गादड़ तो खत्म हो गए थे, ये कित तै आ गए? वह बोला, लोग पहाड़ में जा बड़े तो ये जिनावर खेता मै आ बड़े. ऐसा नहीं है कि गांव वाले ये बात समझते नहीं है और इसे रोकने का प्रयास नहीं कर रहे हैं. वे कर कर रहे हैं. कई दफा पंचायत हो चुकी है. ऊपर प्रशासन तक शिकायतें हो चुकी हैं पर ये खनन से गांव के काफी लोगों का रोजगार भी चल रहा है, इसलिए पंचायत का फैसला सिरे नहीं चढ़ पाता और जहां तक ऊपर प्रशासन की बात है तो उसे खनन माफिया मैनेज कर लेता हैं. जिला चरखी दादरी और जिला भिवानी के खानक का खनन घोटाला सभी जानते ही हैं. NGT वाले भी आंख मूंद लेते हैं. जबकि आज के दौर में एक आम आदमी भी गूगल के माध्यम से कहीं की भी लोकेशन देख सकता है. इस फोटो में खनन से होने वाले पानी की बर्बादी देख सकते हैं कि कैसे पूरा क्षेत्र उजाड़ा जा रहा है. यह फोटो एक आम ग्रामवासी ने अपने फोन से निकाली हैं, तो क्या प्रशासन व NGT जैसी संस्था को यह नहीं दिखता?

अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक समय ऐसा भी आएगा कि यहां से लोग भी पलायन करेंगे. माना कि विकास के लिए रोड़ी पत्थर चाहिए और इससे लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार भी मुहैया हो रहा है तो सरकार को इन सब बातों को ध्यान रख कर कोई ठोस नीति बनानी चाहिए. जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने गुड़गांव फरीदाबाद खनन पर कहा था कि कुछ अगली पीढ़ी के लिए भी छोड़ दो. जंगल और पहाड़ से छेड़छाड़ के नतीजे हम दिल्ली NCR में बढ़ते प्रदूषण से देख ही रहे हैं. सिर्फ NCR ही नहीं, जहां माइनिंग होती है उन गांवों और उसके आसपास के क्षेत्र के AQI का भी बुरा हाल है. मेरे गांव मानकावास के AQI का हाल फोटो में देख सकते हैं. लोगों को ये बातें आने वाले समय में समझ आएंगी जब पानी के संकट के इलावा इस प्रदूषण से रोग भी बढ़ने शुरू होंगें.

साभार: राकेश सांगवान