भीमा कोरेगांव केस: बिना ट्रायल पांच साल तक जेल में रहने के बाद हनी बाबू को मिली जमानत!

 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पूर्व दिल्ली विश्वविद्यालय असिस्टेंट प्रोफेसर हनी बाबू को एल्गार परिषद–भीमा कोरेगांव मामले में लंबित ट्रायल के बावजूद पांच साल से अधिक जेल में रहने के बाद जमानत दे दी है. अदालत ने यह निर्णय लंबे समय तक बिना ट्रायल जेल में रखने को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए सुनाया.

हनी बाबू को प्रिवेंटिव कस्टडी में लगभग पाँच साल सात महीने से अधिक समय हो गया था, लेकिन अब बॉम्बे उच्च न्यायालय की डिविजन बेंच (न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और रंजीतसिंह राभोंसले) ने उन्हें जमानत प्रदान कर दी. जमानत के लिए कोर्ट ने एक लाख की पर्सनल बॉन्ड और उतनी ही राशि के जमानती की शर्त रखी है.

अदालत ने नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) की उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें एनआईए ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए जमानत आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया था. न्यायालय ने कहा कि इतने लंबे समय से ट्रायल के शुरू न होने और मुकदमे की आगे की प्रक्रिया में देरी को देखते हुए, आरोपी को जमानत मिलनी चाहिए.

मामला क्या है?

प्रो.हनी बाबू को 28 जुलाई 2020 को एल्गार परिषद–भीमा कोरेगांव मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था. यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शानीवारवाडा में आयोजित एक कार्यक्रम के बाद हुई हिंसा से जुड़ा है, जिसमें एक व्यक्ति की मौत और कई अन्य घायल हुए थे. अभियोजन पक्ष का दावा है कि इस कार्यक्रम में कथित तौर पर उकसाने वाले भाषणों के कारण हिंसा भड़क गई थी.

एनआईए पर आरोप है कि हनी बाबू को बंदीवादी और माओवादियों से जुड़े होने के आरोपों के तहत गिरफ्तार किया गया था, लेकिन ट्रायल देर से शुरू हुआ और चार्जशीटिंग प्रक्रिया भी लंबित रही, जिससे उनकी हिरासत काफी लंबी हो गई.

न्यायालय ने क्या कहा?

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अत्यधिक लंबी प्री-ट्रायल हिरासत तब तक जारी नहीं रखी जा सकती जब तक ट्रायल जल्द पूरा होने की संभावना दिखे. अदालत ने यह भी कहा कि यदि ट्रायल देर हो रहा है और आरोपी का मुकदमा शुरू नहीं हो रहा है, तो जमानत देना आवश्यक हो जाता है.