पिछले पांच साल में 99,000 हेक्टेयर से ज्यादा वन भूमि परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल की गई: सरकारी आंकड़े

 

केंद्र सरकार द्वारा संसद में प्रस्तुत नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020-21 से 2024-25 के बीच देश में 99,000 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि को विभिन्न गैर-वन परियोजनाओं के लिए अधिस्थापित (डायवर्ट) किया गया है. केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि देश में 2020 से अब तक 99,000 हेक्टेयर से ज़्यादा वन भूमि गैर-वनीय कामों के लिए इस्तेमाल की है, जिसमें सड़क, माइनिंग, हाइड्रोइलेक्ट्रिक और सिंचाई परियोजना का सबसे बड़ा हिस्सा है.

किन परियोजनाओं के लिए हुई सबसे ज्यादा कटौती?

सरकारी विवरण के अनुसार, वन भूमि का सर्वाधिक उपयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में हुआ है:

  • 22,233 हेक्टेयर — सड़क निर्माण परियोजनाओं के लिए
  • 18,914 हेक्टेयर — खनन और खदान से संबंधित गतिविधियाँ
  • 17,434 हेक्टेयर — सिंचाई और जल विद्युत परियोजनाएँ
  • 13,859 हेक्टेयर — पावर ट्रांसमिशन लाइनों के लिए
  • 5,957 हेक्टेयर — रेलवे परियोजनाओं के लिए

अन्य उपयोगों में पेयजल योजनाएँ, रक्षा परियोजनाएँ, पाइपलाइन, औद्योगिक निर्माण, फाइबर-ऑप्टिक केबल, पेट्रोल पंप तथा वन गांवों को राजस्व गांव में बदलना शामिल है.

10 साल में 1.73 लाख हेक्टेयर वन भूमि का अधिस्थान

सरकार ने यह भी बताया कि साल 2014-15 से 2023-24 के बीच करीब 1.73 लाख हेक्टेयर वन भूमि को देशभर में गैर-वन गतिविधियों के लिए मंजूरी दी गई. इससे यह स्पष्ट होता है कि वन भूमि का अधिस्थान एक लगातार जारी प्रवृत्ति है, जो बड़े पैमाने पर विकास और अवसंरचना विस्तार की दिशा में सरकार के रुझान को दर्शाती है.

कानून और प्रक्रिया

वन भूमि का अधिस्थान “वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980” (जिसका संशोधित नाम अब “वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) अधिनियम”) के तहत किया जाता है. इस कानून के अनुसार, किसी भी वन भूमि को गैर-वन उपयोग में लाने से पहले केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य है.

कौन प्रभावित हुआ? — डेटा उपलब्ध नहीं

सरकार ने यह स्पष्ट किया कि इन परियोजनाओं से कितने लोग प्रभावित हुए, विशेषकर आदिवासी समुदायों पर इसका क्या असर पड़ा—इस संबंध में कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं कराया गया है. यह पहलू विशेषज्ञों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है.