रोहित वेमुला का आखरी खत: ‘मनुष्य को कभी एक मस्तिष्क की तरह बरता ही नहीं गया’

 

रोहित वेमुला के आखिरी ख़त का अनुवाद –

जब आप यह ख़त पढ़ेंगे, उस वक़्त मैं यहां नहीं रहूंगा। मुझ पर नाराज़ न हों। मुझे पता है कि आप में से कुछ लोग वाकई मेरी परवाह करते हैं, मुझ से प्यार करते हैं और हमेशा मुझसे अच्छा बर्ताव किया। मुझे किसी से कोई शिकायत है भी नहीं। मुझे हमेशा, ख़ुद से ही शिकायतें थी। मैं अपने जिस्म और अपनी रूह के बीच एक बढ़ती खाई को महसूस कर रहा हूं। मैं एक दैत्य बन गया हूं। मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था। कार्ल सेगन की तरह, विज्ञान का लेखक। अंततः यह वह अंतिम रचना है, जो मुझे लिखने को मिली है…

यह जाने बिना कि लोग प्रकृति से अर्सा पहले सम्बंध विच्छेद कर चुके हैं, मैं विज्ञान, नक्षत्र और कुदरत से प्यार करता रहा। हमारी भावनाएं उधार की हैं। हमारी मोहब्बतें बनावटी हैं। हमारे विश्वास रंगे हुए हैं। हमारी असलियत, नकली कलाकृतियों से साबित होती है। बिना चोट खाए, मोहब्बत करना वाकई मुश्किल हो चला है।

एक इंसान की कीमत, उसकी हालिया पहचान और भविष्य की संभावनाओं तक सीमित कर दी गई है। एक वोट, एक संख्या या किसी एक चीज़ तक। मनुष्य को कभी एक मस्तिष्क की तरह बरता ही नहीं गया, एक ऐसी चीज़ जो वाकई अनमोल हो। यह हर जगह हुआ, तालीम में, सड़कों पर, राजनीति में, मौत में और ज़िंदगी में भी।

मैं इस तरह की चिट्ठी पहली बार लिख रहा हूं। पहली बार, एक आखिरी चिट्ठी। अगर मेरी बातें समझ न आएं, तो मुझे माफ़ कीजिएगा।

हो सकता है कि मैं हमेशा ही, दुनिया को समझने में ग़लत था। मैं इश्क, दर्द, ज़िंदगी और मौत को समझने में ग़लत था। किसी तरह की जल्दी भी नहीं थी, लेकिन मैं हमेशा ही बेसब्र रहा हूं। हमेशा मैं नई ज़िंदगी शुरु करने को लेकर उतावला रहा हूं। हमेशा ही कुछ लोगों के लिए, ज़िंदगी, अपने आप में एक बद्दुआ होती है। मेरी पैदाइश, मेरे जीवन का सबसे बड़ा हादसा था। मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं सका। मेरे अतीत का, उपेक्षित बच्चा।

मैं इस समय आहत नहीं हूं। मैं दुखी भी नहीं हूं। मैं बस खाली हो चुका हूं। अपने बारे में किसी तरह की परवाह नहीं बची है। यह वाकई बहुत बुरा है और इसीलिए मैं ऐसा कर रहा हूं।

लोग मुझे कायर कह सकते हैं। मेरे जाने के बाद मुझे मतलबी या बेवकूफ भी कह सकते हैं। मुझे परवाह नहीं कि मुझे क्या कहा जाता है। मैं ज़िंदगी के बाद की कहानियों, भूतों या रूहों में भी यक़ीन नहीं रखता हूं। अगर किसी बात में मेरा भरोसा है, तो वह यह है कि मैं तारों की सैर कर सकता हूं और दूसरी दुनिया के बारे में जान सकता हूं।

आप जो इस ख़त को पढ़ रहे हैं, अगर मेरे लिए कुछ कर सकते हैं, तो मेरी बकाया 7 महीने की फेलोशिप मेरे परिवार को दिलवा दें। मुझे रामजी को 40 हज़ार रुपए देने हैं। हालांकि उन्होंने कभी मुझसे पैसे नहीं मांगे। लेकिन उस राशि में से उनको पैसे चुका दें।

मेरा अंतिम संस्कार, शांतिपूर्ण और सुचारू ढंग से होने दें। ऐसे बर्ताव करें, जैसे मैं बस आया और चला गया। मेरे लिए आंसू न बहाएं। यह समझें कि मैं ज़िंदा रहने से ज़्यादा खुश, मर कर हूं।

“साये से सितारों की ओर..”

उमा अन्ना, आपके कमरे को इस काम के लिए इस्तेमाल करने के लिए मुझे माफ़ कीजिएगा।

अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन परिवार से, मैं उनको निराश करने के लिए माफ़ी चाहता हूं। मैं उनके भविष्य की शुभकामनाएं करता हूं।

एक अंतिम बार,
जय भीम

मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया। अपनी ज़िंदगी ख़त्म करने के मेरे इस फैसले के लिए कोई और ज़िम्मेदार नहीं है। मुझे किसी ने उकसाया भी नहीं है, न ही अपने लफ़्ज़ों से और न ही हरक़तों से। यह मेरा फैसला है और इसके लिए पूरी तरह से मैं ज़िम्मेदार हूं। मेरे दोस्तों और दुश्मनों को, मेरे जाने के बाद परेशान न किया जाए।