किसानों को लेकर भाजपा और कांग्रेस के दावों में कितना दम?

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देश की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनावों को लेकर अपने घोषणापत्र जारी कर दिए हैं। आम तौर पर यह माना जा रहा था कि दोनों पार्टियां अपने घोषणापत्र में इस बार किसानों को लेकर बड़े वादे करेंगी। ऐसा इसलिए माना जा रहा था क्योंकि पिछले दो सालों में देश के अलग-अलग हिस्सों में कई बड़े किसान आंदोलन हुए और किसानों की बुरी स्थिति बार-बार सामने आई।

उम्मीद के मुताबिक दोनों दलों ने अपने घोषणापत्र में किसानों के लिए कई वादे किए हैं। इन वादों की हकीकत क्या है, उसे जानना जरूरी है। यह भी जानना जरूरी है कि अगर पूरे भी हुए तो इससे किसानों की स्थिति में क्या सुधार होगा।

कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि वह किसानों को ‘कर्ज माफी’ से ‘कर्ज मुक्ति’ की राह पर ले जाएगी। इसके लिए पार्टी ने कहा है कि वह किसानों को उपज के बदले लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करेगी। साथ ही कांग्रेस ने यह भी कहा कि कांग्रेस की सरकार अगर बनी तो लागत में कमी लाया जाएगा और किसानों को संस्थागत कर्ज मिले, यह सुनिश्चित किया जाएगा। इस लिहाज से देखें तो कांग्रेस की कर्ज मुक्ति की बात को पूरा करने के लिए पार्टी ने सांकेतिक तौर पर ही सही, एक रोडमैप बताया है। हालांकि, लाभकारी मूल्य कैसे सुनिश्चित होगा और लागत में कैसे कमी आएगी, इस पर कांग्रेस ने स्थितियों को साफ नहीं किया है।

कांग्रेस ने देश के किसानों से यह वादा भी किया है कि केंद्र की सत्ता में आने के बाद उसकी सरकार हर साल अलग से ‘किसान बजट’ पेश करेगी। इसके जरिए कृषि क्षेत्र पर उसकी जरूरतों के हिसाब से विशेष जोर दिया जा सकेगा। इससे किसानों के मुद्दों पर लोगों का ध्यान तो जाएगा लेकिन अलग बजट किसान और खेती की समस्याओं का समाधान नहीं है। रेलवे के लिए आजादी से लेकर हाल तक अलग बजट पेश किया जाता था लेकिन इससे रेलवे की सेहत में कोई खास सुधार नहीं हुआ। न ही अब इसका विलय आम बजट में करने से हो रहा है। इसका मतलब यह है कि अलग बजट भर कर देने से किसी समस्या के समाधान की कोई गारंटी नहीं है। असल जरूरत समस्या के समाधान को लेकर नीयत की है।

कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में यह भी वादा किया सरकार बनाने के बाद वह एक कृषि के लिए एक स्थायी आयोग बनाएगी। पार्टी ने इसे राष्ट्रीय कृषि विकास एवं योजना आयोग नाम दिया है। कांग्रेस ने कहा है कि इस आयोग में किसान, कृषि वैज्ञानिक और कृषि अर्थशास्त्रियों को शामिल किया जाएगा। ये आयोग सरकार को बताएगी कि कृषि को कैसे फायदेमंद बनाया जाए। घोषणापत्र में यह कहा गया है कि इस आयोग की सिफारिशें सरकार के लिए बाध्यकारी होंगी। कांग्रेस ने यह प्रस्ताव भी दिया है कि यही आयोग न्यूनतम समर्थन मूल्य भी तय करेगा।

यह एक सांस्थानिक हस्तक्षेप होगा। अगर कांग्रेस की सरकार बनती है और अगर वह यह काम कर देती है तो इससे दीर्घकालिक तौर पर कृषि और किसानों की समस्याओं के समाधान में मदद मिलेगी। यह प्रस्ताव तो ऐसा है जिस पर किसी भी सरकार को अमल करना चाहिए। दरअसल, देश में किसानों की स्थिति सुधारने के लिए जो उपाय हुए हैं, उनमें अधिकांश तात्कालिक ही रहे हैं। ऐसे में अगर इस आयोग को बनाने का सांस्थानिक काम होता है तो इससे किसानों का लंबे समय तक लाभ मिलेगा और इससे कृषि को जो मजबूती मिलेगी, उसका लाभ देश की अर्थव्यवस्था को होगा। ऐसे ही सीमांत किसानों के लिए एक नया आयोग बनाने का कांग्रेस का प्रस्ताव भी महत्वपूर्ण है।

कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में भारतीय जनता पार्टी सरकार द्वारा चलाई जा रही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को भी संशोधित करने की बात कही है। पार्टी ने कहा है कि अभी यह योजना किसानों की कीमत पर बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचा रही है। इस बीमा योजना के क्रियान्वयन में खामी का संकेत भाजपा के घोषणापत्र से भी मिलता है। भाजपा ने भी कहा है कि वह इस योजना को स्वैच्छिक बनाएगी। इसके बाद से कई विशेषज्ञ कह रहे हैं कि जिन खामियों की ओर वे लगातार संकेत कर रहे थे, अब उसे खुद इस योजना को लागू करने वाली पार्टी ने मान लिया है।

भाजपा ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का जो लक्ष्य रखा है उसे पूरा करने के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे। पहली बार इसकी घोषणा 2016-17 के बजट में हुई थी। लेकिन तब से लेकर हाल में भाजपा के घोषणापत्र जारी करने तक, कभी भी यह रोडमैप देश के सामने नहीं रखा गया जिस पर चलकर इस लक्ष्य को हासिल किया जाना है। इस वजह से अब तो आम लोगों को भी 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य पर संदेह होने लगा है।

चुनावों से ठीक पहले मोदी सरकार ने दो हेक्टेयर तक जमीन वाले किसानों के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत की थी। इसके तहत हर परिवार को प्रति वर्ष 6,000 रुपये की आर्थिक सहायता मिलनी है। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वादा किया है कि जीतने के बाद वह इस योजना का दायरा बढ़ाकर इसे देश के सभी किसानों के लिए लागू करेगी। भाजपा लगातार कांग्रेस की प्रस्तावित ‘न्याय’ योजना पर सवाल उठा रही जिसके तहत देश के सबसे गरीब परिवारों को 72,000 सालाना की आर्थिक मदद करने का प्रस्ताव है। भाजपा की ओर से कहा जा रहा है कि इसके लिए पैसे कहां हैं। लेकिन भाजपा खुद यह जवाब नहीं दे रही है कि पीएम-किसान के तहत हर किसान परिवार को प्रति वर्ष वह 6,000 रुपये कहां से देगी।

भाजपा ने यह घोषणा भी की है कि वह छोटे और सीमांत किसानों के लिए पेंशन की योजना लाएगी जिससे उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इस पेंशन के लिए किसानों को एक निश्चित अंश दान करना होगा या फिर उन्हें कोई आर्थिक योगदान नहीं देना होगा और यह काम खुद सरकार करेगी। क्योंकि इस सरकार ने कई पेंशन योजनाएं ऐसी लाई हैं जिनमें लाभार्थियों को भी अंशदान करना है। इसलिए किसानों के लिए प्रस्तावित पेंशन योजना पर भााजपा और स्पष्टता रखती तो ज्यादा ठीक रहता।

भाजपा ने घोषणापत्र में किसानों से यह वादा भी किया है कि वह यह सुनिश्चित करेगी कि किफायती दरों पर बेहतर बीज किसानों को समय पर उपलब्ध हो सकें और घर के पास ही उनकी जांच की सुविधा उपलब्ध हो। लेकिन बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों के बढ़ते दबदबे के बीच यह काम कैसे किया जाएगा, इस बारे में स्पष्टता नहीं है।

तिलहन के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने के मकसद से भाजपा ने नए तिलहन मिशन की शुरुआत करने का वादा भी किया है। इसे लागू करने का रोडमैप तो नहीं बताया गया है लेकिन अगर यह मिशन ठीक से लागू हो तो इससे देश का काफी भला होगा। क्योंकि खाद्य तेल के मामले में आयात पर निर्भरता की वजह से देश को कई स्तर पर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

इसके अलावा भाजपा ने पूरे देश में कृषि भंडारण की बेहतर व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए यह वादा किया है कि वह पूरे देश में वेयरहाउस का नेटवर्क विकसित करेगी। भाजपा ने इस संदर्भ में अपने संकल्प पत्र में कहा है, ‘किसानों को अपनी उपज का भंडारण अपने गांव के निकट करने तथा उचित समय पर उसे लाभकारी मूल्य पर बेचने के लिए सक्षम करने के उद्देश्य से हम कृषि उत्पादों के लिए नई ग्राम भंडारण योजना आरंभ करेंगे। हम कृषि उत्पादों की भंडारण रसीद के आधार पर किसानों को सस्ती दरों पर ऋण उपलब्ध कराएंगे।’ अगर सही ढंग से इसे लागू कर दिया जाए तो यह भी कृषि में दीर्घकालिक बदलाव लाने वाला कदम साबित होगा। क्योंकि गांवों के स्तर पर भंडारण एक बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है।

देखा जाए तो देश की दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों में किसानों के लिए कई उपयोगी घोषणाएं हैं। लेकिन अधिकांश घोषणाओं के साथ यह नहीं बताया गया है कि इसे कैसे पूरा किया जाएगा। इस वजह से इन चुनावी घोषणाओं पर किसानों को बहुत भरोसा नहीं हो रहा है। अच्छा तो यह होता कि हर घोषणा के साथ ये पार्टियां उसे लागू करने की कार्ययोजना भी बतातीं। इससे लोगों में इन बातों को लेकर विश्वास भी आता और फिर इस आधार पर लोग उन्हें वोट भी देते।