क्या राहुल गांधी की ‘न्याय’ योजना से बदलेगी गांवों की तस्वीर?

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2019 के लोकसभा चुनावों के पहले विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा जनता को अपने पक्ष में लाने के लिए तरह-तरह की घोषणाएं हो रही हैं। वह चाहे केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी हो या फिर मुख्य विपक्षी कांग्रेस, दोनों तरफ से इस बार घोषणाओं की झड़ी लगी हुई है।

कुछ दिनों पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक चुनावी सभा में कहा था कि अगर केंद्र में कांग्रेस की सरकार आती है तो वह गरीबों के लिए न्यूनतम आय गारंटी सुनिश्चित करने वाली एक योजना लाएगी। गुजरात में जब कांग्रेस कार्यसमिति आयोजित हुई तो उस बैठक में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इस योजना का नाम सुझाया। उन्होंने इसके लिए ‘न्याय’ नाम सुझाया जिसके अंग्रेजी के अक्षरों को विस्तार देने पर न्यूनतम आय योजना नाम बनता है।

इसके बाद पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बाकायदा प्रेस वार्ता करके ‘न्याय’ योजना की घोषणा कर दी। इसके तहत राहुल गांधी ने कहा है कि अगर केंद्र में उनकी सरकार बनती है तो चरणबद्ध तरीके से देश के 20 फीसदी सबसे गरीब लोगों को 6,000 रुपये प्रति महीने की आर्थिक मदद सरकार करेगी। इसका मतलब यह हुआ कि हर ऐसे परिवार को पूरे साल के 72,000 रुपये मिलेंगे।

राहुल गांधी ने यह भी कहा कि इस योजना के जरिए गरीब से गरीब परिवार को प्रति महीने 12,000 रुपये की आय गारंटी दी जाएगी। उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि अगर किसी गरीब परिवार की आय 12,000 रुपये से कम है तो उसकी आय और 12,000 रुपये के अंतर की पूर्ति इस योजना के तहत की जाएगी। इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई ऐसा परिवार 4,000 रुपये प्रति महीने कमा रहा है तो उसे कांग्रेस की इस प्रस्तावित योजना के तहत 8,000 रुपये की आर्थिक मदद मिलेगी।

कांग्रेस पार्टी ने यह भी कहा है कि इस योजना के लिए जरूरी धन की व्यवस्था कैसे होगी, इसके लिए विस्तृत रूपरेखा तैयार कर ली गई है। इस प्रस्तावित योजना पर कांग्रेस पार्टी ने जिस बैठक में निर्णय लिया, उस बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी थे। उनके जैसे अर्थशास्त्री की मौजूदगी में लिया गया निर्णय बताकर कांग्रेस यह संकेत दे रही है कि उसकी न्याय योजना पर आर्थिक व्यावहार्यता पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।

अब सवाल यह उठता है कि क्या इस प्रस्तावित योजना से ग्रामीण भारत का कुछ भला हो पाएगा? कांग्रेस की इस न्याय योजना पर अर्थशास्त्रियों की ओर से जो शुरुआती प्रतिक्रिया आई है, उसमें इसके आर्थिक व्यावहार्यता पर तो चिंता जताई गई है लेकिन साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी आ सकती है।

ये अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि तकरीबन पांच करोड़ परिवार यानी तकरीबन 25 करोड़ लोगों को अगर सीधी आर्थिक मदद मिलती है तो इससे कृषि की उत्पादकता पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा। क्योंकि इस पैसे का एक हिस्सा गरीब परिवार के लोग खेती में निवेश करेंगे।

इन अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि अधिकांश गरीब गांवों में हैं तो अगर न्याय योजना के तहत उन तक पैसे पहुंचते हैं तो इससे ग्रामीण भारत में कई तरह के उत्पादों और सेवाओं की मांग बढ़ेगी। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की मांग बढ़ सकती है। वहीं रोजमर्रा के उत्पादों की मांग भी बढ़ सकती है। कुल मिलाकर आर्थिक विशेषज्ञों को लग रहा है कि अगर कोई भी सरकार ऐसी योजना को ठीक से लागू करने के लिए धन की व्यवस्था कर पाती है और इसे ठीक से लागू करने में सफल हो जाती है तो इससे भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नई गति मिलेगी। इसका सकारात्मक असर पूरी अर्थव्यवस्था पर दिखेगा।