पराली जलाने पर 2000 किसानों पर FIR, विपक्ष ने उठाये सवाल

पराली की आग उत्तर प्रदेश में किसानों के गले की फांस बनती जा रही है। दिल्ली के प्रदूषण के लिए भले ही हरियाणा और पंजाब में पराली की आग को जिम्मेदार ठहराया जाता है, लेकिन किसानों पर कार्रवाई के मामले में तेजी यूपी सरकार ज्यादा दिखा रही है। समाचार एजेंसी आईएएनएस के अनुसार, यूपी के विभिन्न जिलों में अब तक 2000 से ज्यादा किसानों के खिलाफ पराली जलाने के आरोप में 1100 से ज्यादा एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। कई मामलों में कार्रवाई करते हुए किसानों को जेल भेजा गया है।

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में पराली जलाने के पर किसान को कॉलर पकड़कर खींचने वाले इंस्पेक्टर की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जबकि सहारनपुर में 6 किसानों की गिरफ्तारी का मामला तूल पकड़ चुका है। इन मामलों को लेकर विपक्ष राज्य की योगी सरकार को घेरने का प्रयास कर रहा है।

प्रदूषण के नाम पर किसानों के उत्पीड़न का मुद्दा उठाते हुए कांग्रेस महासिचव प्रियंका गांधी ने सवाल उठाया कि क्या प्रदूषण के लिए सिर्फ किसान जिम्मेदार हैं? प्रदूषण फैलाने के असली जिम्मेदारों पर करवाई कब होगी? यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी पराली के बहाने किसानों को जेल में डाले जाने पर कड़ी आपत्ति जाहिर की है। उन्होंने ट्वीट किया कि पर्यावरण प्रदूषण के बहाने पराली जलाने के नाम पर किसानों को जेलों में डालने वाले महानुभाव बताएं कि राजनीतिक प्रदूषण फैलाने वालों को जेल कब होगी।

पराली के प्रदूषण पर सख्त रुख अपनाते हुए यूपी पुलिस ने पिछले 24 घंटों में राज्य के विभिन्न जिलों में 144 एफआईआर दर्ज की हैं। इनमें से 15 एफआईआर बलरामपुर में, 8 एफआईआर बहराइच और कुशीनगर, 7 एफआईआर अलीगढ़, बस्ती, हरदोई और 6 एफआईआर रामपुर और शाहजहांपुर जिलों में दर्ज हुई हैं।

राज्य के पुलिस महानिदेशक एचसी अवस्थी ने सभी जिलों में पराली जलाने से रोकने के सख्त आदेश दिये हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह लोग पराली जलाने वाले किसानों को इससे होने वाले नुकसान तथा इसके उपयोग के प्रति जागरूक करें।

किसानों का उत्पीड़न स्वीकार नहीं किया जाएगा: योगी आदित्यनाथ

किसानों की गिरफ्तारी और दुर्व्यवहार के मुद्दे पर आलोचनाओं से घिरने के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पराली जलाने से संबंधित कार्रवाई में किसानों के साथ कोई दुर्व्यवहार या उत्पीड़न स्वीकार नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि पराली जलाने के दुष्प्रभावों तथा उसके बेहतर उपयोग हेतु कृषकों को जागरूक करने की आवश्यकता है।

विलुप्त होने के कगार पर 10 लाख प्रजातियां

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट 6 मई, 2019 को आने वाली है। 1,800 पन्नों की इस रिपोर्ट में पर्यावरण में हो रहे बदलावों, इसमें मनुष्य की भूमिका और इससे दूसरी प्रजातियों के लिए पैदा हो रहे खतरों के अलावा जलवायु परिवर्तन के विभिन्न आयामों पर विस्तृत चर्चा की गई है। इस पर चर्चा के लिए दुनिया के 130 देशों के वैज्ञानिक पेरिस में जमा हो रहे हैं।

अभी इस विस्तृत रिपोर्ट का ड्राफ्ट सार्वजनिक हुआ है। 44 पन्नों के इस ड्राफ्ट में बताया गया है कि इंसानी गतिविधियों की वजह से तकरीबन दस लाख प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि इंसानों ने जिस तरह से सिर्फ अपने हितों का ध्यान रखते हुए संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया है, उसकी वजह से इस तरह के खतरे पैदा हो रहे हैं।

इस ड्राफ्ट रिपोर्ट में यह कहा गया है कि सिर्फ दस लाख प्रजातियों पर विलुप्त होने का ही खतरा नहीं मंडरा रहा बल्कि तकरीबन 25 फीसदी प्रजातियां दूसरे तरह के खतरों का सामना कर रही हैं। इसमें यह दावा किया गया है कि पिछले एक करोड़ साल में यह दौर ऐसा है जिसमें सबसे तेज गति से प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं।

इसकी वजह मुख्य तौर पर मनुष्य की गतिविधियां हैं। मनुष्य की बसावट, कृषि और अन्य जरूरतों की वजह से जंगलों की अंधाधुंध ढंग से नष्ट किया जा रहा है। इससे जानवरों के रहने की जगहें सीमित हो रही हैं। वहीं दूसरी तरफ पेड़-पौधों की प्रजातियां भी विलुप्त होते जा रही हैं। रिपोर्ट में प्रदूषण और जानवरों के अवैध व्यापार को भी मुख्य वजहों के तौर पर रेखांकित किया गया है।

इंसान ने खुद की गतिविधियों से दूसरी प्रजातियों के लिए जो संकट पैदा किए हैं, उसकी आंच खुद उस तक आनी है। इसकी पुष्टि संयुक्त राष्ट्र की यह ड्राफ्ट रिपोर्ट भी कर रही है। इसमें यह बताया गया है कि इससे खास तौर पर वैसे लोग प्रभावित होंगे जो गरीब हैं और हाशिये पर रहते हुए अपना जीवन जी रहे हैं। क्योंकि उनके पास इन बदलावों के हिसाब से जरूरी बंदोबस्त करने के लिए संसाधन नहीं होंगे।

इसके प्रभावों के बारे में यह भी कहा जा रहा है दीर्घकालिक तौर पर इससे पीने के पानी का संकट पैदा होगा। सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा का संकट होगा। कृषि उत्पादन नीचे जाएगा। इससे खाद्यान्न की कीमतों में तेज बढ़ोतरी हो सकती है और दुनिया के कई हिस्सों को खाद्य संकट का सामना करना पड़ सकता है।

इस ड्राफ्ट रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इससे समुद्र के पानी में प्रदूषण बढ़ेगा और जो मछलियां निकाली जाएंगी, उनमें प्रोटीन की मात्रा कम होगी। साथ ही उनमें दूसरे तरह के जहरीले रसायन बढ़ेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि जो लोग इन मछलियों को खाएंगे, उन्हें स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।

इसमें यह भी कहा गया है कि कई वैसे कीटों पर भी विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है जो परागन का काम करते हैं। अगर ऐसा होता है तो कई पौधों और फूलों का अस्तित्व बचना मुश्किल हो जाएगा।

अब सवाल यह उठता है कि इस स्थिति के समाधान के लिए क्या किया जाए? सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि इंसानी गतिविधियां इस संकट के लिए जिम्मेदार हैं, इसलिए सुधार की शुरुआत भी मनुष्य की गतिविधियों से ही होनी चाहिए। हमें यह समझना होगा कि प्रकृति की विभिन्न प्रजातियों में से मनुष्य भी एक प्रजाति है और प्राकृतिक संसाधनों पर सिर्फ हमारा ही हक नहीं है।

हमें यह भी समझना होगा कि अगर संसाधनों का सही और पर्याप्त इस्तेमाल करें तो इससे प्रकृति का पूरा चक्र बना रहेगा। जब प्रकृति का चक्र सही ढंग से चलता रहेगा तभी मनुष्य भी सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ता रहेगा। लेकिन अगर मनुष्य की गतिविधियों की वजह से प्राकृतिक चक्र गड़बड़ होता है तो इससे पूरी व्यवस्था गड़बड़ हो जाएगी।

जरूरत इस बात की है कि इंसानी गतिविधियों की वजह से लाखों प्रजातियों पर विलुप्त होने के खतरे को वैश्विक स्तर पर समझा जाए और इसके समाधान के लिए दुनिया के अलग-अलग देश एकजुट होकर काम करें। पर्यावरण समझौतों को लेकर विकसित देशों और विकासशील देशों में विचारों की जो दूरी है, उसे पाटने की जरूरत है।