पंजाब सरकार से नाराज मजदूरों ने मुख्यमंत्री आवास घेरा, हुआ लाठीचार्ज

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान 30 नवंबर की दोपहर जब गुजरात में आम आदमी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार में व्यस्त थे और अपनी सरकार की उपलब्धियां गिना रहे थे, तभी संगरूर में उनके घर के बाहर बड़ी संख्या में किसान-मजदूरों ने सरकार पर वादे पूरे न करने का आरोप लगाकर जोरदार प्रदर्शन किया। किसान व खेत मजदूरों के संगठनों के संयुक्त मोर्चा के बैनर तले हुए इस प्रदर्शन में पंजाब के सभी जिलों से आए करीब 10 हजार लोग शामिल हुए।

मोर्चा में शामिल जमीन प्राप्ति संघर्ष कमिटी (जेडपीएसएसी) के नेता मुकेश मलौध ने डाउन टू अर्थ को बताया कि प्रदर्शनकारी किसान मजदूर दोपहर ढाई सीएम आवास से करीब आधा किलोमीटर दूर पटियाला बाईपास पर एकड़ हुए। यहां से प्रदर्शनकारियों ने सीएम के ड्रीमलैंड कॉलोनी में स्थित सीएम आवास की तरफ कूच किया। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए सीएम आवास के बाहर चार जिलों का पुलिस बल तैनात था और जबर्दस्त बैरिकेडिंग की गई थी।

सीएम आवास के बाहर पहुंचते ही पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प और धक्कामुक्की होने लगी। प्रदर्शनकारियों को तितर बितर करने के लिए पुलिस ने लाठियां भांजी और उन्हें पीछे धकेल किया। इस लाठीचार्ज और धक्कामुक्की में कई प्रदर्शनकारियों की पगड़ी गिर गई, महिलाओं की चुन्नियां खींच ली गईं और कई लोगों को चोटें आईं। इससे नाराज प्रदर्शनकारी सड़क पर ही बैठ गए और सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे।

मुकेश ने बताया कि प्रदर्शनकारियों को उग्र होता देखा प्रशासन ने आधा घंटे का समय मांगा। आधा घंटे बाद प्रशासन ने एक लेटर देते हुए कहा कि 21 दिसंबर को दोपहर 11 बजे मुख्यमंत्री से किसानों व मजदूरों की बैठक तय की गई है। मुकेश ने बताया कि मुख्यमंत्री से समय मिलने के बाद प्रदर्शनकारियों ने अपना प्रदर्शन खत्म कर दिया।

हालांकि मुकेश यह भी बताते हैं कि मुख्यमंत्री इससे पहले भी कई बार मीटिंग का समय दे चुके हैं लेकिन हर बार मीटिंग से भाग जाते हैं। उन्होंने कहा कि अगर इस बार मुख्यमंत्री ने ऐसा करने की कोशिश की तो सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन छेड़ा जाएगा। मुकेश सरकार पर निशाना साधते हुए कहते हैं, “सरकार ने बदलाव का जो मुखौटा पहना था, वह उतर गया है। पहले की और मौजूदा सरकार में कोई अंतर नहीं है।”

मजदूरों की प्रमुख है कि उन्हें मनरेगा के तहत साल भर काम दिया जाए और न्यूनतम मजदूरी 700 रुपए निर्धारित की जाए। साथ ही पंचायत भूमि (शामलात) का तीसरा हिस्सा दलित समुदाय को कम दर पर देना सुनिश्चित किया जाए। शामलात के लिए होने वाली डमी बोलियों को खारिज किया जाए और इस समस्या को स्थायी रूप से हल किया जाए।

भूमिहीन दलित मजदूरों की एक अहम मांग यह भी है कि जरूरतमंदों को 10-10 मरले का प्लॉट दिया जाए और घर बनाने के लिए 5 लाख रुपए का अनुदान दिया जाए, पहले से काटे गए भूखंडों पर तुरंत कब्जा दिया जाए, जिन गांवों की पंचायतों ने भूखंड के लिए प्रस्ताव पास किया है और अब तक उसे लागू नहीं किया है, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।

मजूदरों की ऐसी लगभग 30 मांगें हैं। मुकेश कहते हैं कि सरकार पहले ही बहुत सी मांगों को मान चुकी है, लेकिन उन्हें लागू करने की दिशा में अब तक कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। सरकार का यह रवैया अब नहीं चलेगा।

साभार: डाउन टू अर्थ

पंजाब में किसानों की 100 करोड़ की मशीनें डकार गए अधिकारी

पंजाब के 20 जिलों में 100 करोड़ रुपये की कृषि मशीनरी गायब होने के खुलासे के बाद, पंजाब सरकार ने विजिलेंस ब्यूरो (वीबी) को 1,178 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच सौंपने का फैसला लिया है. अतिरिक्त मुख्य सचिव, कृषि, सर्वजीत सिंह ने पुष्टि की है कि उन्होंने विजिलेंस जांच करने के लिए कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री कुलदीप धालीवाल को जांच रिपोर्ट भेज दी है.

इससे पहले, कृषि सचिव दिलराज सिंह संधावालिया ने कहा था कि चूंकि विभाग पहले ही जांच कर चुका है और 100 करोड़ रुपये से अधिक की मशीनें गायब पाई गई हैं, अब सरकारी जांच एजेंसी द्वारा जांच की जा सकती है. सोमवार को सौंपी गई एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि राज्य में 11 से 12 फीसदी मशीनरी का पता नहीं चल पाया है, जिसकी कीमत 100 करोड़ रुपये अनुमानित है.

द ट्रिब्यून द्वारा किए गए खुलासे के बाद, पंजाब सरकार ने 1 जुलाई को केंद्र की सब्सिडी के साथ राज्य भर में खरीदी गई 90,000 मशीनों में से प्रत्येक के ऑडिट और भौतिक सत्यापन का आदेश दिया था. अधिकारियों को लाभार्थी का नाम और गांव, किसान को प्राप्त सब्सिडी की राशि, आधार कार्ड नंबर और मशीन के बारे में जानकारी सहित विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था. अधिकारियों को यह भी जांचने के लिए कहा गया है कि मशीन जमीन पर मौजूद थी या नहीं. सत्यापन 15 दिनों के भीतर पूरा किया जाना था.

पंजाब के कृषि विभाग के अधिकारी बठिंडा में उन कृषि मशीनरी बैंकों का पता लगाने में असमर्थ रहे हैं, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा पराली से निपटने के लिए एक योजना के तहत स्थापित किया गया था. कृषि उपकरणों की खरीद पर 80 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान करते हुए, इन बैंकों / केंद्रों की स्थापना सहकारी समितियों द्वारा की गई थी जिसमें किसान, स्वयं सहायता समूह, किसान समितियाँ, कृषि समूह और निजी उद्यमी शामिल थे.

मध्यप्रदेश के सेंट्रल फार्म मशीनरी ट्रेनिंग एंड टेस्टिंग इंस्टीट्यूट बुदनी, की एक टीम ने जुलाई में बठिंडा, बरनाला और संगरूर जिलों में 107 केंद्रों का सर्वेक्षण किया था. टीम ने पंजाब सरकार को सौंपी अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि इनमें से केवल 73 ही सत्यापित हो पाए हैं और 34 बताए गए पतों पर नहीं मिल पाए हैं. प्रत्येक बैंक को 6 लाख से 8 लाख रुपये सब्सिडी के रूप में दिए गए हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि किसानों को सूचना देने के लिए इन केंद्रों के बाहर कोई डिस्प्ले / सूचना बोर्ड नहीं लगाया गया था. इससे यह भी खुलासा होता है कि सरकारी सब्सिडी पर खरीदी गई मशीनों को योजना के तहत कवर होने वाले सीमांत/छोटे किसानों को किराए पर नहीं दिया गया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन तीन जिलों में बैंकों को 320 मशीनों की आपूर्ति की गई, जिनमें से केवल 276 भौतिक तौर पर मिलीं. सत्रह मशीनों का एकबार भी उपयोग ही नहीं किया गया था. इन बैंकों को कुल 167 हैप्पी सीडर्स की आपूर्ति की गई, जिनमें से 24 “भौतिक रूप से उपलब्ध नहीं” थे और दो हैप्पी सीडर बेकार पड़े थे. मशीनरी के कम उपयोग का संकेत देते हुए, रिपोर्ट बताती है कि एक सीजन में एक हैप्पी सीडर द्वारा कवर किया गया औसत क्षेत्र 68 एकड़ है, इन तीन जिलों में धान के तहत कुल क्षेत्रफल 9,500 एकड़ से अधिक है. मल्चर जैसी अन्य मशीनों का औसत उपयोग भी बहुत कम किया गया था.

साथ ही इन बैंकों के पदाधिकारियों को इन मशीनों के संचालन का प्रशिक्षण नहीं दिया गया था. किसी भी कस्टम हायरिंग सेंटर ने हायरिंग, रिपेयर और मेंटेनेंस का रिकॉर्ड नहीं रखा है. पंजाब के कृषि सचिव केएस पन्नू ने दावा किया कि केंद्रीय टीम के साथ सूची में कुछ विसंगतियां थीं. “हमने बाद में उन्हें बठिंडा जिले में सही सूची प्रदान की और अन्य मुद्दों को भी संबोधित किया.”

गौरतलब है कि पराली जलाने पर नियंत्रण के लिए केंद्र ने किसानों को व्यक्तिगत खरीद के साथ-साथ इन-सीटू फसल के तहत फसल अवशेष प्रबंधन के लिए मशीनरी बैंक स्थापित करने के लिए अवशेष प्रबंधन योजना के तहत चार वर्षों (2018-19 से 2021-22) में 1,178 करोड़ रुपये की सब्सिडी प्रदान की थी. हालांकि, इनमें से बड़ी संख्या में बैंक कागजों पर ही रह गए और अधिकारियों ने सब्सिडी की राशि गबन कर ली.

पिछली कांग्रेस सरकार समय पर कार्रवाई करने में विफल रही थी और यह घोटाला अगले तीन वर्षों तक जारी रहा. पूर्व कृषि मंत्री रणदीप नाभा ने दावा किया था कि मशीनरी खरीदने के लिए चार साल के लिए 1,178 करोड़ रुपये की केंद्रीय सब्सिडी दी गई थी. हालांकि, उपकरण कभी नहीं खरीदे गए.